Monday, June 26, 2017

कहां है अंतरआत्मा की आवाज़ ? (व्यंग्य)

मीरा कुमार जी बड़ी भोली हैं। मासूम हैं। उनकी अपील है कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में निर्वाचक मंडल अपनी अंतरआत्मा की आवाज़ पर वोट करें। इस अपील को सुनकर कुछ युवा नेता चाहते हैं कि वो अपनी अंतरआत्मा की आवाज़ पर वोट करें। लेकिन उनकी परेशानी यह है कि उन्हें नहीं मालूम कि यह आवाज़ कैसी होती है? उन्होंने सुना ज़रुर है कि गुज़रे ज़माने में राजनेता राजनीति से ऊपर उठकर अंतरआत्मा की आवाज़ सुना करते थे। लेकिन कैसे-ये कोई बताने वाला नहीं है। संसद-विधानसभा-पंचायतों वगैरह में इस तरह का कोई कोर्स भी कभी नहीं कराया गया, जिसमें यह बताया गया हो कि अंतरआत्मा की आवाज़ सुनने के क्या तरीके हैं। अंतरआत्मा अपनी आवाज़ किसी स्पीकर में भी नहीं कहती, जिससे उसे आसानी से सुना जा सके। बाहर की दुनिया में इतना कोलाहल है कि असल में बोली हुई बात तो कई बार सुनना मुश्किल होता है। अंतरआत्मा की आवाज़ कहां सुनी जाएगी? फिर, संसद-विधानसभा में रहकर नेताओं के कान भी धीमी आवाज़ को सुन नहीं पाते। संसद-विधानसभा वगैरह में पहले ही इतना हल्ला होता है कि कई बार सांसद-विधायक अपनी बात समझाने के लिए इशारों का इस्तेमाल करते हैं। और कई नेता तो हल्ला में गुल्ला मिलाकर ऐसा मारक किस्म का हल्ला-गुल्ला करते हैं कि कान फट जाते हैं। ऐसे नेता अंतरआत्मा की आवाज़ कैसे सुनें ? कुछ नेताओं को कभी-कभार अंतरआत्मा की हल्की फुल्की आवाज़ सुनाई दे भी जाती है तो वो उसे नजरअंदाज करने में ही भलाई समझते हैं। वो जानते हैं कि अंतरआत्मा की आवाज़ सुनने से ज्यादा जरुरी है आलाकमान की आवाज़ सुनना। वो ही टिकट देगा। वो ही मंत्रीपद देगा। टिकट नहीं मिला तो पूरी राजनीति धरी की धरी रह जाएगी और पार्टी के सत्ता में आने के बाद मलाईदार पद नहीं मिला तो राजनेता होने का फायदा ही क्या। आत्मा का क्या है। वो अजर-अमर है। आत्मा को न तो आग जला सकती है, न शस्त्र काट सकता है। तो आत्मा तो रहनी ही है। आत्मा रहेगी तो उसकी आवाज़ भी रहेगी। इस जन्म में न सुन पाएंगे तो अगले जन्म में सुन लेंगे। ऐसा नहीं है कि नेताओं को कभी भी अंतरआत्मा की आवाज़ सुनाई नहीं देती। जब कभी राजनेताओं के वेतन-भत्ते की बढ़ोतरी का प्रस्ताव पेश किया जाता है तो सभी राजनेता अपनी अंतरआत्मा की आवाज़ पर उसे बढ़ाने के पक्ष में वोट देते हैं। फिर-प्रस्ताव भले सबसे बड़ी दुश्मन पार्टी ने रखा हो। वैसे, सच ये भी है कि इन दिनों राजनेताओं को क्या किसी को भी अंतरआत्मा की आवाज़ सुनाई नहीं देती। बलात्कार की घटनाओं से पटे पेज को देखकर कभी हमारी अंतरआत्मा नहीं कहती कि इस मुद्दे पर आंदोलन हो। भ्रष्टाचारी राजनेताओं को जीभर कर कोसने वाले हम लोग लाइसेंस बनवाने के लिए आज भी रिश्वत देने से नहीं हिचकते और उस वक्त हमारी अंतरआत्मा नहीं कहती कि यह गलत है। दरअसल, ऐसा लगता है कि बीते कई साल से अंतरआत्मा की आवाज़ ही छुट्टी पर चली गई है। उसकी ईद सिर्फ आज नहीं है !

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